क़ुतुब मीनार का इतिहास और रोचक तथ्य
| Qutub Minar History In Hindi
कुतुब मीनार, 120 मीटर ऊँची दुनिया की सबसे बड़ी ईंटो की मीनार है और मोहाली की फ़तेह बुर्ज के बाद भारत की दुसरी सबसे बड़ी मीनार है. प्राचीन काल से ही क़ुतुब मीनार का इतिहास चलता आ रहा है, कुतुब मीनार का आस-पास का परिसर कुतुब कॉम्पलेक्स से घिरा हुआ है, जो एक UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी है. कुतुब मीनार दिल्ली के मेहरुली भाग में स्थापित है. यह मीनार लाल पत्थर और मार्बल से बनी हुई है, कुतुब मीनार 72.5 मीटर (237.8 फ़ीट) ऊँची है जिसका डायमीटर 14.32 मीटर (47 फ़ीट) तल से और 2.75 मीटर (9 फ़ीट) चोटी से है. मीनार के अंदर गोल सीढ़ियाँ है, ऊँचाई तक कुल 379 सीढ़ियाँ है. क़ुतुब मीनार / Qutub Minar स्टेशन दिल्ली मेट्रो से सबसे करीबी स्टेशन है.
1200 AD में दिल्ली सल्तनत के संस्थापक क़ुतुब-उद-दिन ऐबक ने क़ुतुब मीनार का निर्माण शुरू किया. 1220 में ऐबक के उत्तराधिकारी और पोते इल्तुमिश ने क़ुतुब मीनार में तीन और मंजिल शामिल कर दी. 1369 में सबसे ऊँची मंजिल पर बिजली कड़की और इससे मंजिल पूरी तरह गिर गयी थी. इसीलिये फिरोज शाह तुग़लक़ ने फिर कुतुब मीनार के पुर्ननिर्माण का काम अपने करना शुरू किया और वे हर साल 2 नयी मंजिल बनाते थे, उन्होंने लाल पत्थर और मार्बल से मंजिलो का निर्माण कार्य शुरू किया था.
क़ुतुब मीनार ढेर सारी इतिहासिक धरोहरो से घिरा हुआ है, तो इतिहासिक रूप से क़ुतुब मीनार कॉम्पलेक्स से जुड़े हुए है. इसमें दिल्ली का आयरन पिल्लर, कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, अलाई दरवाजा, द टॉम्ब ऑफ़ इल्युमिश, अलाई मीनार, अला-उद-दिन मदरसा और इमाम ज़मीन टॉम्ब शामिल है. और भी दूसरी छोटी-मोटी इतिहासिक धरोहर शामिल है.
क़ुतुब मीनार का इतिहास – Qutub Minar History In Hindi
क़ुतुब मीनार का निर्माण कार्य क़ुतुब-उद-दिन ऐबक ने 1199 AD में शुरू किया था, जो उस समय दिल्ली सल्तनत के संस्थापक थे. कुतुब मीनार को पूरा करने के लिये उत्तराधिकारी ऐबक ने उसमे तीन और मीनारे बनवायी थी.
कुतुब मीनार के नाम को दिल्ली के सल्तनत कुतुब-उद-दिन ऐबक के नाम पर रखा गया है, और इसे बनाने वाला बख्तियार काकी एक सूफी संत था. कहा जाता है की कुतुब मीनार का आर्किटेक्चर तुर्की के आने से पहले भारत में ही बनाया गया था. लेकिन क़ुतुब मीनार के सम्बन्ध में इतिहास में हमें कोई भी दस्तावेज नही मिलता है. लेकिन कथित तथ्यों के अनुसार इसे राजपूत मीनारों से प्रेरीत होकर बनाया गया था. पारसी-अरेबिक और नागरी भाषाओ में भी हमें क़ुतुब मीनार के इतिहास के कुछ अंश दिखाई देते है. क़ुतुब मीनार के सम्बन्ध में जो भी इतिहासिक जानकारी उपलब्ध है वो फ़िरोज़ शाह तुगलक (1351-89) और सिकंदर लोदी (1489-1517) से मिली है.
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद भी कुतुब मीनार के उत्तर में ही स्थापित है, जिसे क़ुतुब-उद-दिन ऐबक ने 1192 में बनवाया था. भारतीय उपमहाद्वीप की यह काफी प्राचीन मस्जिद मानी जाती है. लेकिन बाद में कुछ समय बाद इल्तुमिश (1210-35) और अला-उद-दिन ख़िलजी ने मस्जिद का विकास किया.
1368 AD में बिजली गिरने की वजह से मीनार की ऊपरी मंजिल क्षतिग्रस्त हो गयी थी और बाद में फ़िरोज़ शाह तुगलक ने इसका पुनर्निर्माण करवाया. इसके साथ ही फ़िरोज़ शाह ने सफ़ेद मार्बल से 2 और मंजिलो का निर्माण करवाया. 1505 में एक भूकंप की वजह से क़ुतुब मीनार को काफी क्षति पहोची और हुई क्षति को बाद में सिकंदर लोदी ने ठीक किया था. 1 अगस्त 1903 को एक और भूकंप आया, और फिर से क़ुतुब मीनार को क्षति पहोची, लेकिन फिर ब्रिटिश इंडियन आर्मी के मेजर रोबर्ट स्मिथ ने 1928 में उसको ठीक किया और साथ ही कुतुब मीनार के सबसे ऊपरी भाग पर एक गुम्बद भी बनवाया. लेकिन बाद में पकिस्तान के गवर्नल जनरल लार्ड हार्डिंग के कहने पर इस गुम्बद को हटा दिया गया और उसे क़ुतुब मीनार के पूर्व में लगाया गया था.
क़ुतुब मीनार की कुछ रोचक बाते – Interesting Facts About Qutub Minar
1. क़ुतुब मीनार को सबसे ऊँचे गुम्बद वाली मीनार माना जाता है, कुतुब मीनार की छठी मंजिल को 1848 में निचे ले लिया गया था लेकिन बाद में इसे कुतुब कॉम्पलेक्स में ही दो अलग-अलग जगहों पर स्थापित किया गया था. आज इसे बने 100 साल से भी ज्यादा का समय हो चूका है.
2. इल्तुमिश की न दिखाई देने वाली कब्र.
इल्तुमिश की कब्र के निचे भी एक रहस्य है, जो 1235 AD में बनी थी और वही इल्तुमिश की वास्तविक कब्र है. इस रहस्य को 1914 में खोजा गया था.
इल्तुमिश की कब्र के निचे भी एक रहस्य है, जो 1235 AD में बनी थी और वही इल्तुमिश की वास्तविक कब्र है. इस रहस्य को 1914 में खोजा गया था.
3. यदि एक मीनार बनना खत्म हो जाये तो वह क़ुतुब मीनार से भी बड़ी होगी.
अलाई मीनार (शुरुवात 1311 AD) यह मीनार क़ुतुब मीनार से भी ज्यादा ऊँची, बड़ी और विशाल है. 1316 AD में अला-उद-दिन ख़िलजी की मृत्यु हो गयी थी और तभी से अलाई मीनार का काम रुका हुआ है.
अलाई मीनार (शुरुवात 1311 AD) यह मीनार क़ुतुब मीनार से भी ज्यादा ऊँची, बड़ी और विशाल है. 1316 AD में अला-उद-दिन ख़िलजी की मृत्यु हो गयी थी और तभी से अलाई मीनार का काम रुका हुआ है.
4. आज की नयी धरोहर तक़रीबन 500 साल पुरानी है.
इमाम ज़ामिन की कब्र दुसरे मुग़ल शासक हुमायूँ ने 1538 AD में बनवायी थी. और कुतुब मीनार कॉम्पलेक्स में यह सबसे नयी धरोहर है.
इमाम ज़ामिन की कब्र दुसरे मुग़ल शासक हुमायूँ ने 1538 AD में बनवायी थी. और कुतुब मीनार कॉम्पलेक्स में यह सबसे नयी धरोहर है.
5. आप आज भी कुतुब मीनार की छठी मंजिल तक जा सकते हो ?
आज भी किसी को भी क़ुतुब मीनार की सबसे ऊपरी मंजिल पर नही जाने दिया जाता, लेकिन आज भी आप क़ुतुब मीनार की छठी मंजिल तक जा सकते हो.
शायद आप कंफ्यूज हो रहे हो? कुतुब मीनार के एक कोने में छठी मीनार है, जो आज भी 1848 लाल पत्थरो से बनी हुई है. लेकिन फिर थोड़ी ख़राब दिखने की वजह से उसे हटा दिया गया था.
आज भी किसी को भी क़ुतुब मीनार की सबसे ऊपरी मंजिल पर नही जाने दिया जाता, लेकिन आज भी आप क़ुतुब मीनार की छठी मंजिल तक जा सकते हो.
शायद आप कंफ्यूज हो रहे हो? कुतुब मीनार के एक कोने में छठी मीनार है, जो आज भी 1848 लाल पत्थरो से बनी हुई है. लेकिन फिर थोड़ी ख़राब दिखने की वजह से उसे हटा दिया गया था.
6. एक जैसी धरोहर-
अलाई दरवाज़ा, यह क़ुतुब मीनार के उत्तरी भाग में है, जिसके दरवाजे हमे एक जैसे दिखाई देते है.
अलाई दरवाज़ा, यह क़ुतुब मीनार के उत्तरी भाग में है, जिसके दरवाजे हमे एक जैसे दिखाई देते है.
7. धुप घडी का सेंडरसन से कोई सम्बन्ध नही-
जिस इंसान ने क़ुतुब मीनार कॉम्पलेक्स बनवाया उसी की याद में वहा एक धुप घडी भी लगवायी गयी है.
जिस इंसान ने क़ुतुब मीनार कॉम्पलेक्स बनवाया उसी की याद में वहा एक धुप घडी भी लगवायी गयी है.
8. 1910 तक क़ुतुब मीनार को एक रास्ते में था, यह दिल्ली-गुडगाँव रोड क़ुतुब मीनार के बींच से होकर गुजरता था. यह रास्ता इल्तुमिश की कब्र के दाये भाग में ही था.
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